वह शक्ति हमें दो दयानिधे,
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें |
पर सेवा पर उपकार में हम,
निज जीवन सफल बना जावें ||
हम दीन दुखी निबलों विकलों
के सेवक बन सन्ताप हरें |
जो हों भूले भटके बिछुड़े
उनको तारें ख़ुद तर जावें ||
छल-द्वेष-दम्भ-पाखण्ड- झूठ,
अन्याय से निशदिन दूर रहें |
जीवन हो शुद्ध सरल अपना
शुचि प्रेम सुधारस बरसावें ||
निज आन मान मर्यादा का
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे |
जिस देश जाति में जन्म लिया
बलिदान उसी पर हो जावें ||
यहाँ से उद्धृत: http://www.sat-karma.com/spr1/read_poem.php?param=poem49&poet=agyaat
2 comments:
सुन्दर भावाभिव्यक्ति...बेहतरीन प्रस्तुति..बधाई.
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"शब्द-शिखर" के एक साथ दो शतक पूरे !!
gud one...
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