Saturday, September 26, 2009

क्या भारत वास्तविकता में एक धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतंत्र देश बन पाया है?

भारतीय सभ्यता कई-कई हज़ार वर्ष पुरानी है, प्राचीनतम काल से ही संसार के दुसरे कोनों से जाने कितनी ही सभ्यता भ्रमण करते हुए भारत वर्ष में आईं और यहाँ की आबो-हवा में रच बस गईं और यहीं की हो गईं| भारतीय संस्कृति कुछ इसी ही प्रकार से फलती फूलती रही है| ईतिहासकारों के मान्यतानुसार कई हज़ार वर्ष पहले आर्य कहीं पश्चिम से भारतीय धारा पर आए और यहाँ के मूल निवासी द्रविड़ को दक्षिण भारत में खदेड़ कर उत्तरी भारत में बस गए और भारतीय संस्कृति में नया आयाम स्थापित किया|

इसी तरह कई जातियाँ-प्रजातियाँ यहाँ आती और यहीं रचती-बसती गई| फिर मुगल आए यहाँ के शासकों को युद्ध में पराजित कर भारतवर्ष में अपना साम्राज्य फैला लिया, कुछ सौ उनका साम्राज्य भारत वर्ष पर चला, उनकी संस्कृति यहाँ की संस्कृति में घुल मिल गयी, ऊर्दू भाषा इसी सांस्कृतिक मिलन की ऊपज है| फिर अंग्रेज आए व्यापर करते करते भारत देश को गुलाम बना कर शासन कराने लगे और अपनी अंग्रेजियत यहाँ की संस्कृति में घोलने लगे|

फिर अंग्रेजों की चंगुल से हिंदुस्तान की आज़ादी का दौर शुरू हुआ, लगभग एक पुरी सदी भले ही लग गई, आज़ादी का ये जूनून रंग लाया और अंग्रेजी तानाशाही को भारतवर्ष से पलायन करने पर विवस कर दिया| आज़ादी के उस जंग में हिस्सा लेने वाला हरएक क्रन्तिकारी सभी धर्म और मजहब से कहीं ऊपर हिन्दुस्तानी सिर्फ़ हिन्दुस्तानी ही रहा होगा| ऐसी एकजुटता, ऐसी सामंजस्यता , ऐसी दीवानगी एवं जूनून ऐसा देशप्रेम भारतीय संस्कृति ने शायद पहली बार ही देखी होगी! उस द्दौर में एक ही धर्म रहा होगा और वह यकीनन भारतीयता ही रही होगी....

परन्तु जिस आज़ादी की जूनून नें भिन्न-भिन्न धर्म एवं साम्प्रदाय के लोगों को भारतीयता के एक ही रंग में रंग दिया था, जूनून पुरा होते ही, आज़ादी मिलते ही भारतीय जनमानस के ह्रदय में बहने वाला वह रंग कुछ यूँ फीका पड़ा की आजादी के ६ दसक बीत जाने के बाद भी बेरंग ही बना हुआ है| दुनिया का अपने आप में एकलौता राष्ट्र जो धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देता है, साम्प्रदायीकता एवं धार्मिक कट्टरवाद के चंगुल में ऐसा जकड गया है की सदियों बाद भी न छुट सके| परंती ऐसा नहीं है की सभी धर्मान्धता के चंगुल में फंसे हुए है, आज के दौर में जहाँ एक जमात कट्टर्वादों की है तो वहीं उदारनीति के समर्थकों की भी कमीं नहीं है| परंती कट्टरपंथी चाहे वे किसिस्भी धर्म या मजहब के हों वे उदारपंथ के मानाने वालों पर कहीं न कहीं भरी पड़ ही जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप साम्प्रदायीक वैमनस्व सर उठाने लगता है और समय समय पर देश की संप्रभुता को आघात पहुंचाते रहता है|

आप मेसे कुछ यह सोच रहे होंगे की अरे १५ अगस्त या २६ जनवरी तो बीत चुका है, फिर इस चिठ्ठाकार को क्या हो गया है जो असमय ही भारतीय अस्मिता की दुहाई रटे जा रहा है!!! तो जनाब ये सब अकारण ही नहीं है, और हमारी यही मानसिकता कि केवल १५ अगस्त या २६ जनवरी या एसे ही कुछ एक ख़ास अवसर पर ही देश प्रेम की चर्चा करना उचित होगा हमें जकडे रखा है और हमारी आज़ादी नाम मात्र ही रह गई है|

अच्छा तो मैं बताता हुं कि मुझे असमय यह सारी बातें क्यों करनी पड़ रही है.... Google Groups के "Hindi Bhasha" group में मैंने नवरात्र एवं ईद कि बधाई हेतु हिन्दी भाषा ग्रुप के मित्रों को -मेल लिखा जिस पर एक सज्जन को आपत्ति हुई और उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति कर विरोध जताया, जिसका पुरा वाक्य निचे ऊद्धृत कर रहा हूँ...

मैंने निम्नलिखित बधाई संदेश भेजा...
सेDinesh R Saroj
कोhindibhasha@googlegroups.com
दिनांक२१ सितम्बर २००९ ९:०४ AM
विषय"नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएँ" एवं "ईद मुबारक हो!!!"



हर दुआ कुबूल हो आपकी,
हर तमन्ना साकार हो,
महफिलों सी रहे रोशन जिंदगी,
कभी न जीवन में वीरानी हो,
हमारे तरफ से आप सभी को

"नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएँ"
एवं
"ईद मुबारक हो!!!"

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With Best Regards,
Dinesh Saroj
Desktop इंजिनियर
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जिस पर मोहन भाया जी कि निम्नालिखी प्रतिक्रिया आयी...

से mohan bhaya
को उत्तर देंhindibhasha@googlegroups.com
दिनांक२३ सितम्बर २००९ ११:०९ PM
विषय[Hindi Bhasha] Re: "नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएँ" एवं "ईद मुबारक हो!!!"



Navratra ki shubhkamnaye to theak hai per doosari....? kyon? jabki 15 august aur 26 janwari ko unki bherh itni nahi hoti jitna veh log tajmahal aur roads per karte hai,,,,? iska kya matlab hua yeh samajh ke bahar hai? sath hi ve log hamare kisi tyohar ki shubhkamnayen publicaly nahi dete....? sochiye.....varna jo log polio drops/ parivar niojan / nagrikta ke bare me ghambhir nahi hai aur din dooni rat chogni apni sankhaya bada rahe hai aur yahi raftar rahi to bahut jaldi veh hi dikhenge bharat me hum nahi rahenge....jaisa kuch din pahale indian mujahiddin ne hamare news papers me vigaypti prakashit karvai ki 5 sal me bharat se hindoon ka naan nishan mita denge॥? kahan hai hamari bhartiyata ki bhavna....nagrikta ki bhavna..? ya gulami aur maska parast hi hamari pahachan ban gai hai....?
-eak bhartiya nagrik
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जिससे मेरे उदारवादिता को आहत पहुँचा और मैंने उन्हें अपनी प्रतिक्रिया ईस प्रकार दर्ज किया.....

से Dinesh R Saroj
कोhindibhasha@googlegroups.com
दिनांक२५ सितम्बर २००९ १०:३३ AM
विषयRe: [Hindi Bhasha] Re: "नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएँ" एवं "ईद मुबारक हो!!!"



प्रिय मोहनजी,

आपकी वतनपरस्ती एवं उससे जुडी चिंता के लिये आपको सलाम!!!

आपकी चिंता एवं उसके उपलक्ष्य में आपने जो ताजमहल एवं सडकों पर भीड़ वाली बात कही है मैं भी उससे इत्तेफाक रखता हूँ| परन्तु १५ अगस्त एवं २६ जनवरी में इकठ्ठे भीड़ में से आप किसी हिन्दू, मुस्लिम या किसी ईसाई को पृथक कैसे कर पायेंगे? क्या ऐसा कोई चस्मा है? क्या कहीं भीड़ के आंकड़े निर्दिष्ट किये हुए है? या हम बस ऐसा मान लेते है और अपने मन में अवधारणा बना लेते है|

जब आप ताजमहल एवं सडकों पर भीड़ वाली बात करते हैं, तब शायद आप यह भूल जाते है या यूँ कहे की नजरअंदाज कर देते है की उससे कहीं कहीं ज्यादा भीड़ मुंबई एवं अन्य जगहों पर गणेश पंडालों में गणेश जी के दर्शन के लिए उमड़ती है तथा चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन करने आये श्रध्हलुओं की होती है, जिसे संभालना प्रशासन के लोगों के लिए सिरदर्द बन जाता है| मुंबई के जन्माष्टमी को भी शायद आप भूल गए जिसमे इस बार swine flu के संक्रमण के भय के बावजूद भी भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी| एसे और भी कई उधाहरण मैं प्रस्तुत कर सकता हूँ जैसे कुम्भ का मेला ईत्यादी| क्या आपने कभी क्रिकेट मैच में जुटे भीड़ को उनके जाती-धर्म के आधार पर आंकने की कोशिश की है?

आज भारत देश एक धर्म निरपेक्ष देश के रूप में अपनी संप्रभुता बना चुका है.... और भारतीय संविधान ने सभी धर्मों को उनकी संप्रभुता और स्वतंत्रता बनाये रखने का पुर-पूरा अधिकार दिया है|
और इसपर न ही आप ना ही मैं और ना ही कोई और प्रश्न उठा सकता है|

और रही "इंडियन मुजाहिद्दीन" के ५ सालों में हिन्दुओं का नामों निशां मिटाने की तो उसके लिए आप निश्चिंत रहें.... ऐसी कोशिशे सदियों से होती आ रही हैं पर सदा ही नाकाम भी होती रही हैं!!! भारतीय संस्कृति इतनी उदार और परिपक्कव है की यह सभी को अपने में समाहित कर लेती है!!!

कोई भी जागरूक माता-पिता अपने बच्चों को पोलियो टिका से वांच्छित नहीं रखेंगे .... और यदि कोई रखता है तो मैं समझता हूँ वे नासमझ हैं, उन्हें जागरुक बनाने की जरुरत है| इसे धर्म-जाती के आधार से देखना मुझे तर्क सांगत लगता है| और यदि कोई धार्मिक गुरु पोलियो टिका न देने की सलाह या फतवा देता है तो मैं इसे धर्मान्धता और अज्ञानता ही कहूँगा|

परिवारनियोजन एक गंभीर मुद्दा है, जिस तरह जनसँख्या विस्फोट हो रहा है यह निकट भविष्य के लिए बहुत ही बड़ी समस्या बनता जा रहा है| पर मैं फिर कहना चाहूँगा इस विषय को भी एक रंग के चश्मे से न देखें| आपको केवल मुस्लिम परिवार ही नहीं अपितु हर धर्म के परिवार मिल जायेंगे जो बच्चों को ईश्वर का रूप कहते हैं और परिवार नियोजन के नाम से कन्नी काटते हैं| मैंने एक हिन्दू धर्मगुरु (किसी का नाम नहीं लेना चाहूँगा) के पुस्तक में उन्हें यह सन्देश देते पाया है की भारत देश में हिन्दुओं की संख्या बढाइये सरकार के परिवार नियोजन को तवज्जो न दें? इसके बारे में आप क्या कहेंगे??? मैं तो इसे धर्मान्धता ही कहूँगा फिर चाहे कोई भी धर्म गुरु ऐसा क्यों न कहे|

रही भारतीय नागरिकता की बात, तो भाईजी, तो जो मुस्लिम खुद को भारतीय या हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद नहीं करते थे (या जैसी भी परिस्थिति रही हो) १९४७ में ही भारत छोड़ चले गए थे| और जो देश छोड़ कर नहीं गए यहीं रह गए आप उन्हें देशप्रेमी कहने के बजाय उन्हें एक विशेष रंग के चश्में से देख रहे हैं!!! यह कहाँ तक तर्कसंगत है??? आप यह भूल जाते हैं की मुस्लिमों के आलावा कुछ गैर मुस्लिम (हिन्दू, सिख एवं अन्य) १९४७ में भारत नहीं आये थे और जहां थे वहीँ बसे रहे, उन्हें अपनी जन्मभूमि से प्रेम था चाहे अब वह अखंड भारत देश का हिस्सा न रहा हो| उनका मैं सम्मान करता हूँ| और जो मुस्लिम यहाँ रह गए हैं उनका भी सम्मान करता हूँ|

कृपया हमारे राजनीतिज्ञों एवं तथाकथित कट्टरपंथीयों की तरह अखंड भारत देश को जाती-धर्म के चश्में से मत देखें| कम से कम मैं इतना कह ही सकता हुं की मेरे जितने भी गैर हिन्दू मित्र या जानने वाले लोग हैं वे मुझे हर हिंन्दु धार्मिक त्योहारों की शुभकामना के साथ साथ स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस की बधाई देते है| और मैं इसी पर विश्वास करता हुं| और तो और कुछ तो मेरे साथ मंदिरों में आकर प्रार्थना करने में जरा भी संकोच नहीं करते| और मैं स्वयं भी दरगाहों, मजारों, गिरिजाघरों में उसी श्रध्दा से जाता हूँ जैसे की मंदिरों में|

मैं सर्वधर्म समभाव में यकीन रखता हूँ, और हर धर्म को सामान रूप से आदर भी देता हूँ| और मेरा सभी महानुभावों से निवेदन है की मानव धर्म को सभी जाती-धर्मों से सर्वोपरि समझे| वैस हर इंसान अपनी विचारधारा के लिए स्वतंत्र है| सुनी-सुनाई बातों में कितना सत्य है या कितनी छलावा यह मैं नहीं कह सकता| hindibhasha Group पर भी गैर हिन्दू मित्र हिन्दू त्योहर्रों की बधाई देते रहे हैं यह तो आपने भी देखा होगा|

अंत में मैं यह भी कहना चाहूँगा की बिना आग के धुआं नहीं निकलता, कुछ चंद मुठ्ठी भर एसे लोग भी यकीनन हैं जो भारत देश की संप्रभुता को क्षति पहुँचाने में जुटे हुए हैं और लगातार प्रयास करते रह रहे हैं, जिस कारण हमें अक्सर कई आतंकवादी हमलों एवं सांप्रदायिक तनाव का सामना करना पड जाता है| परन्तु किसी परिवार के रसोई घर के चूल्हे में लगी आग से निकले धुएँ को किसी आतंकी हमले में हुए विस्फोटों का धुंआ समझ लेना कितना तर्कसंगत है???

मैं किसी के भावना को आघात पहुँचाना नहीं चाहता, और यदि जाने अनजाने ऐसा कुछ हुआ हो तो क्षमा प्रार्थी हुं!!!

रहीमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो चटाकाई|
टूटे से फिर ना जुड़े,
जुड़े गाँठ परि जाई||


जय हिंद !!!

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With Best Regards,
Dinesh Saroj
Desktop Engineer
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मेरे इस प्रतिक्रिया पर कुछेक महानुभव का समर्थन संदेश भी आया, यहाँ तक कि जयराम "विप्लव" जी ने अपने चिठ्ठा में इस पुरे वाकये को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया..... "Hindi bhasha google group" में चल रहे विवाद से सबक लेना चाहिए ब्लॉग जगत को |
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आज के लिए इतना ही काफी नहीं था कि इसीसे मिलाता जुलता एक और संदेश हिन्दी भाषा ग्रुप पर प्रसारित हुआ.... जो इस प्रकार है

से(swamee shree ji ) swamee shree
दिनांक२३ सितम्बर २००९ ५:५४ PM
विषय[Hindi Bhasha] vichaar karen -yah kitana uchit hai-swamee shree ji (swamee shree paramchetanaa nandji )

Subject: : Prayer or show of force

नमाज या शक्ति प्रदर्शन
दिल्ली गुडगाँव एक्सप्रेस वे एन .एच 8 पर मुसलमानों द्वारा पढ़ी गई नमाज के सन्दर्भ में आज (22-09-2009) के विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार व फोटो देखकर एहसास हुआ कि मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग या यूँ कहें कि पूरा मुस्लिम समाज कट्टरवाद का शिकार हो रहा है l आज से कुछ वर्ष पूर्व गली मुहल्लों की मस्जिदों में पढ़ी जाने वाली नमाज अब सडको , मुख्या मार्गो में पढ़ी जा रही है .

आखिर इससे क्या साबित किया जा रहा है ?
कही यह हिंदुस्तान में तालिबान की संरचना का एक अंग तो नहीं ?
हिन्दुओ के धार्मिक आयोजनों के लिए प्रशासनिक अनुमति की अनिवार्यता , इनके लिए कोई कानून नहीं ?

ये सब होता रहा और प्रशासन मूक बनकर देखता रहा .

हिंदुस्तान को पाकिस्तान , साउदी अरब बनने से रोकने के लिए हमे ऐसे आयोजनों (कट्टरता) का विरोध करना होगा अन्यथा वह समय दूर नहीं जब रोज नमाज के समय हमे अपने घरो में ही रहना पड़ेगा .

www.rashtrawadisena.org


कृपया देश हित में इस सन्देश को अधिक से अधिक लोगो तक भेजे.

संलग्न - टाईम्स ऑफ़ इंडिया एवं दैनिक जागरण में प्रकाशित समाचार।
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जिस पर मेरी प्रतिक्रिया इस प्रकार रही....

सेDinesh R सरोज
कोhindibhasha@googlegroups.com
दिनांक२५ सितम्बर २००९ ११:०४ PM
विषयRe: [Hindi Bhasha] vichaar karen -yah kitana uchit hai-swamee shree ji (swamee shree paramchetanaa nandji )

आज सुबह की शुरुआत एक कट्टरवादी को समझाने की कोशिश से हुई, और अब दिन का समापन भी उसी अंदाज में करना पड़ रहा है, पर मैं उदार भारतीय संस्किति को नमन करता हूँ...

मुस्लिमों नें रेलगाडी में नमाज़ क्या पढ़ लिया, साम्प्रदायीक मुद्दा बन समाचार पत्रों की एवं चिठ्ठाजगत की सुर्खियाँ बन बैठीं... क्या अपने ईश्वर की स्तुति करना जेहाद कहलाता है.....

क्या कभी किसी पत्रकार नें नवरात्रि, दशहरा, दीपावली के दौरान कभी भी रेलगाडी में सफर नहीं किया....? यकीनन नहीं ही किया होगा.... शायद इसीलिए हिन्दू यात्रियों द्बारा रेलगाडी में हिन्दू धार्मिक त्यौहार जोर-शोर एवं हर्षोल्हास के साथ मनाने की खबर भी किसी न किसी अखबार में जरूर छपती..... पत्रकारिता की ऐसी व्यवसायीकरण एवं तथाकथित कट्टरवाद ने ही भारतवर्ष को साम्प्रदायीक तनावों में उलझाए रखा है!!!

बस अब और ज्यादा नहीं लिखा सकता.... निन्द्रासन में जाना भी जरूरी हो रहा है....

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With Best Regards,
Dinesh Saroj
Desktop Engineer
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मैं हर उस कट्टरपंथी धर्मावलम्बी का विरोध करता हूँ जो महज अपने मजहब को बढ़ा-चढा कर प्रस्तुत करने की होड़ में अन्य धर्मों को निचा दिखने की हद तक पहुँच जाता है| फ़िर चाहे वो अल्लाह तालाह का अनुयायी हो, शिव-विष्णु का पुजारी या ईसामसीह का समर्थक गुरुनानक का शिष्य या चाहे बुद्ध दार्शनिक....

अब क्या सही है क्या ग़लत इसका मापदंड कौन निर्धारित करेगा???? और उसकी योग्यता एवं विश्वश्नियता कौन निर्धारित करेगा ???


भीष्मपितामह एवं महात्मा गांधीजी समेत अन्य शहीदों नें यह कभी नहीं सोचा होगा कि जिस भारतवर्ष के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया, न्योछावर कर दिया उसकी ऐसी दयनीय आवस्था होगी!!!

अंत में कबीर साहेब के कुछ दोहे कहना चाहुँगा -

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिल्या कोय,
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा ना कोय
|

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भयो न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, जो पढ़े सो पंडित होय|




@ Dins'

1 comment:

MOHAN BHAYA said...

" दिक्कत तो इस बात की है न कि हम में दम ही नहीं है खुल कर विरोध करने का ! क्या करें , ? हमारे कुछ भूतपूर्व नेताओं ने हम में " साम्प्रदायिक एकता की भावना जो भर दी है ' और हाँ यह भावना केवल हमारे देश में ही चहुँ ओर बहुतायत से पाई जाती है ! बस इसी के हम गुलाम हो कर रह गएँ है न ...! यह हमे विरासत में दे गए हमारे कुछ पूर्वज नेता ..! इसी के कारण हम विरोध नहीं कर पाते ! दिनोदिन हमारे देश में " उनका वर्चस्व बढता चला जा रहा है और हम विरोध करने में भी डरने लगे है न ,,,! " काश हम ' उनका खुल कर विरोध कर सकें " !
कभी उनके देश जा कर देखिये ये जो साम्प्रदायक होने कि हम बातें करतें है न वहां नहीं होती ? वहां नागरिकों में भी संचार माध्यमों से हिन्दुओं के लिए जहर भरा जाता है ! और यहाँ उनको हम अपने बराबर बैठातें हैं ?
कभी कभी लगता है कि हम आज़ाद हैं ही कहाँ ? जहाँ हिन्दू कहने पर अपने ही आपति उठायें ....तो गैरों को क्या दोष देना ? चलिए हम तो अपना कर्तव्य निभाएंगे जिसे जो सोचना है ...जो कहना है कहता रहे ?
जय हिंद ....
मोहन भया