Tuesday, September 29, 2009

विजयादशमी के दिन एक महिला ने आतंकी को ढेर किया...

विजयादशमी के दिन दुर्गा माता का रूप धर एक मुस्लिम महिला ने अपने घर में जबरन घुस आए लस्कर के आतंकवादी को अपनी साहस एवं सजगता का परिचय देते हुए कुल्हाडी से वार कर मौत के घाट उतार दिया| दशहरे के अवसर पर, जिसे अधर्म पर धर्म की विजय के स्वरूप जाना जाता है, एक रावण रूपी आतंकी का खात्मा, दुर्गा स्वरूपी एक घरेलु महिला के हाथों होना अपने आप में इस दिन की महिमा को चरितार्थ कर देता है|

बी.बी.सी न्यूज़ पर छपी ख़बर:

रूखसाना को अब अपनी जान का भी ख़तरा है.

जम्मू-कश्मीर के राजौरी ज़िले के काल्सी गाँव में 18 वर्षीय लड़की रुख़साना कौसर ने अद्भुत साहस दिखाते हुए एक चरमपंथी को ढेर कर दिया और दो अन्य को ज़ख्मी कर दिया. बीबीसी से बात करते हुए रूखसाना ने पूरी घटना को इन शब्दों में बयान किया.

"रात को लगभग नौ बजे मेरे दरवाज़े को ज़ोर-ज़ोर से पीटने की आवाज़ें आने लगी. हम लोगों ने दरवाज़ा नहीं खोला. लेकिन जब हमें लगा कि दरवाज़ा तोड़ दिया जाएगा तो मेरे माँ-बाप ने मुझे चारपाई के नीचे छुप जाने के लिए कहा और उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया.

हथियार से लैस तीन लोग घर में घुस आए जबकि चार अन्य बाहर दरवाज़े पर ही रह गए. उन्होंने बिना कुछ कहे मेरे माँ-बाप को पीटना शुरू कर दिया. उन्होंने अम्माँ-अब्बा को इस बुरी तरह से पीटा कि वह ज़मीन पर गिर गए.

हम लोगों ने इस इलाक़े में बहुत दिनों से किसी दहशतगर्द को नहीं देखा था... वे इस इलाक़े में लगभग 11 साल बाद आए थे.

मुझसे अपने माँ-बाप की हालत देखी नहीं गई इसलिए मैंने सोचा कि मरने से पहले मुझे बहादुरी के साथ उनका मुक़ाबला करना चाहिए. मेरे माँ-बाप बुरी तरह चीख़ रहे थे और वे लोग उनका मुंह बंद करने के लिए कोई कपड़ा तलाश कर रहे थे.

मैं चारपाई के नीचे से निकल कर बाहर आ गई.

तभी एक दहशतगर्द के बाल मेरे हाथों में आ गए और मैंने ज़ोर से पकड़ कर उसे दीवार से टक्कर दे दी जिससे वह गिर पड़ा और फिर मैंने कुल्हाड़ी से उसपर वार कर दिया जो उसकी गर्दन पर लगा।

जान को ख़तरा

एक दूसरे दहशतगर्द पर कुल्हाड़ी चलाई जो उसके चेहरे पर लगी। किसी तरह मैंने एक आदमी की राइफ़ल छीन ली और बिना रुके गोली चलाती रही। बाद में देखा गया कि उस दहशतगर्द कमांडर के जिस्म पर 12 गोलियाँ लगी थीं।

बकौल रुख़साना "हमने टीवी पर फ़िल्मों में हीरो को बंदूक़ चलाते देखा था और मैं उसी तरह गोली चलाती रही. किसी तरह मुझ में हिम्मत आ गई थी. मैं उस वक़्त तक गोली चलाती रही जबतक कि मैं थक के चूर नहीं हो गई."

उसी बीच एक दहशतगर्द ने गोली चलाई जो मेरे चाचा के बाज़ू को ज़ख्मी करती हुई निकल गई. उसी दौरान मेरे भाई ने भी एक आतंकवादी की राइफ़ल छीन ली और उसने भी गोली चलानी शुरू कर दी थी.

उनसे हमारी लड़ाई काफ़ी देर चलती रही. इससे पहले मैंने कभी राइफ़ल को हाथ भी नहीं लगाया था उसे चलाना तो दूर की बात थी.

लेकिन हमने टीवी पर फ़िल्मों में हीरो को बंदूक़ चलाते देखा था और मैं उसी तरह गोली चलाती रही. किसी तरह मुझ में हिम्मत आ गई थी. मैं उस वक़्त तक गोली चलाती रही जब तक कि मैं थक के चूर नहीं हो गई.

उन्होंने मेरी माँ से सिर्फ़ मेरा नाम पूछा था.

ये चरमपंथी रूखसाना की गोली का शिकार बना.

इस लड़ाई में दो और दहशतगर्द ज़ख़्मी हुए, उनके चहरे पर कुल्हाड़ी के वार के साथ मुझे लगता है कि गोली भी लगी थी. मेरे हिसाब से उसका ज़िंदा बचना मुश्किल है.

ऐसा लगता है कि अल्लाह ने मुझे इस मुसीबत की घड़ी में इतनी हिम्मत दी कि मैं उन दहशतगर्दों का मुक़ाबला कर पाई. लेकिन मुझे डर है कि वे लोग इस घटना के बाद मुझे नहीं छोड़ेंगे. ये उनके लिए बड़ी शर्म की बात है कि उनका एक कमांडर इस लड़ाई में मारा गया.

हालांकि पुलिस ने मेरे घर के पास एक पिकेट बना दिया है और उन्होंने पूरी सुरक्षा का यक़ीन भी दिलाया है लेकिन अब हमारा इस गांव में रहना मुश्किल है. उन्हें चाहिए कि हमें राजौरी के शहर या किसी दूसरी महफ़ूज़ जगह भेज दें.

(बीबीसी संवाददाता बीनू जोशी के साथ बात-चीत पर आधारित)

सौजन्य : http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2009/09/090929_rukhsana_story_mb.shtml

1 comment:

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है, आपके लेखन में प्रखरता की आकांक्षी हूँ .......